Chhattisgarh News: इस गांव में 70 से अधिक परिवार रहते हैं. ग्रामीणों को कांकेर जाने के लिए पगडंडी का सहारा लेना पड़ता है, लोग लकड़ी का पुल बनाकर दूसरे गांव पहुंचते हैं.

Kondagaon Road News: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में प्रशासन की अनदेखी से तंग आकर सैकड़ों ग्रामीणों ने श्रमदान कर खुद ही अपने गांव में 3 किलोमीटर की सड़क बना दी. पूरे बस्तर संभाग में इस बात पर चर्चा जोरों पर है. दरअसल पिछले 15 सालों से केशकाल विधानसभा में पड़ने वाले कोहकामेटा पंचायत के आश्रित गांव नलाझर के ग्रामीण अपने गांव में सड़क निर्माण करवाने के लिए सरकारी कार्यालयों और जनप्रतिनिधियों के चक्कर काट रहे थे.

स्थानीय जनप्रतिनिधियों और शासन प्रशासन ने इन ग्रामीणों की कोई सुध नहीं ली, जिसके बाद थक हार कर ग्रामीणों ने खुद श्रमदान कर सड़क बनाने का निर्णय लिया. ग्रामीणों ने लगभग 3 किलोमीटर से ज्यादा लंबी मिट्टी की सड़क तैयार कर ली. ग्रामीणों का कहना है कि कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. इसी सड़क से जनप्रतिनिधि भी वोट मांगने आएंगें, जिसके बाद जनता इसका जवाब उन्हें जरूर देगी.

रोड बनने से ग्रामीणों को मिली राहत

नालझर गांव के ग्रामीणों ने बताया कि सरकार चुनाव से पहले बड़े-बड़े दावे करती है और अंतिम छोर तक सड़कों का जाल बिछाने की वायदे करती है. बीते 15 सालों से नालझर गांव के सैकड़ों ग्रामीण उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं. कई बार मांग करने के बावजूद भी उनके गांव में 3 किलोमीटर की सड़क नहीं बनाई गई, जिसके चलते ग्रामीणों को कई तकलीफों का सामना करना पड़ा है. उन्होंने बताया कि मुख्य सड़क से लगभग 15 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच उनका गांव बसा हुआ है और लगभग 4 दशक पुराना है. इस गांव में 70 से अधिक परिवार रहते हैं. ग्रामीणों को कांकेर जाने के लिए पगडंडी का सहारा लेना पड़ता है, लोग लकड़ी का पुल बनाकर दूसरे गांव पहुंचते हैं.

ग्रामीणों ने कहा कि बरसात के समय काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस सड़क को बनाने के लिए कांकेर विधायक और केशकाल विधायक समेत जिले के अधिकारियों को कई बार पत्राचार भी किया गया, लेकिन किसी ने भी उनकी इस मांग की सुध नहीं ली. उन्होंने कहा कि वन धन समिति की राशि और जन सहयोग से मिट्टी की सड़क बनाने का कार्य ग्रामीणों के द्वारा शुरू किया गया और लगभग अब सड़क पूरी बनकर तैयार होने को है. उन्होंने कहा कि अगर यह सड़क बन जाती है, तो कांकेर मुख्यालय पहुंचने में उन्हें काफी आसानी होगी.

ग्रामीणों के अनुसार यह सड़क महज 3 किलोमीटर लंबी है, जंगल क्षेत्र और जर्जर होने की वजह से यहां काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. केशकाल की तरफ से जाने पर लगभग 45 से 50 किलोमीटर दूरी तय करना पड़ता है, लेकिन वहीं 3 किलोमीटर की सड़क बन जाने से कांकेर पहुंचने में सिर्फ 25 से 30 किलोमीटर की दूरी ही तय करना पड़ता है. ग्रामीणों ने चुनाव में जनप्रतिनिधियों को सबक सिखाने की बात कही.

15 साल से कर रहे थे मांग

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि उनके नालझर गांव को वन ग्राम से राजस्व ग्राम में परिवर्तन किया गया. साल 2008 और 2012 में जनपद से सड़क बनाने की राशि भी स्वीकृत हुई थी, लेकिन विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण सड़क नहीं बन पाया. इसके बाद पूरे गांव के ग्रामीणों ने कई बार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से सड़क बना देने की गुहार लगाई, लेकिन 15 साल बीत जाने के बावजूद भी इस ओर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने कोई ध्यान नहीं दिया. जिसके चलते मजबूरन खुद सैकड़ों ग्रामीण रापा, तगाड़ी लेकर श्रमदान कर सड़क बनाने के काम में जुट गए.

ग्रामीणों का कहना है कि यह सड़क पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाती है, तो उन्हें कांकेर पहुंचने के लिए केवल आधे घंटे का ही समय लगेगा. वहीं इससे पहले ग्रामीणों को कांकेर पहुंचने के लिए एक से डेढ़ घंटे का समय लगता था. इधर ग्रामीणों के द्वारा श्रमदान कर सड़क बनाए जाने की जानकारी मिलने के बावजूद भी अब तक स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन के अधिकारियों ने इनकी कोई सुध नहीं ली. इस वजह से अब यहां के ग्रामीणों ने विधानसभा चुनाव में सबक सिखाने की बात कही है.

By jansetu