चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन नतीजे सामने आने के बाद साफ नजर आ रहा है कि पीएम मोदी की यह कोशिश कर्नाटक में रंग नहीं ला पाई.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव-2023 के परिणाम आ चुके है. जहां एक तरफ कांग्रेस खेमे में उत्सव का माहौल है, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के लिए यह समय आत्ममंथन का बन चुका है. दरअसल कर्नाटक विधानसभा चुनाव के एक साल बाद ही 2024 के मई महीने में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं.
ऐसे में कर्नाटक चुनाव को लिटमस टेस्ट जैसा भी देखा जा रहा था. भारतीय जनता पार्टी पिछले नौ सालों से केंद्र की सत्ता में है. इस पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में अपनी जीत दर्ज करने और सत्ता में बने रहने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा दिया था. चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन नतीजे सामने आने के बाद साफ नजर आ रहा है कि पीएम मोदी की यह कोशिश कर्नाटक में रंग नहीं ला पाई.
लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद एक बार फिर ये बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या कांग्रेस अब भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर देने में सक्षम है. या क्या लोकसभा चुनाव को लेकर नरेंद्र मोदी की राह मुश्किल हो गई है?
पीएम मोदी का प्रचार
कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी को जीत दिलवाने के लिए लिए जी-जान लगा दिया था. चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी पूरे सात दिनों में 17 रैलियों में शामिल हुए और पांच रोड शो भी किया.
बीजेपी चाहती थी कि कर्नाटक में उनकी पार्टी की जीत हो ताकि वह आने वाले चुनावों में इस जीत को प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल कर सके.
कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने नौ दिनों में दो रातें दिल्ली के बाहर गुजारी ताकि वह प्रचार के दौरान ज्यादा से ज्यादा रैलियां और रोड शो कर सकें. उनका कर्नाटक पर ज्यादा ध्यान इसलिए भी था क्योंकि इस राज्य में साल 1985 के बाद से कोई सत्ताधारी दल दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर सकी है और पीएम इस बार राज्य के इस प्रथा और अपनी पार्टी की किस्मत को बदलना चाहते थे.
प्रधानमंत्री मोदी समेत बीजेपी नेताओं का प्रचार
भारतीय जनता पार्टी की तरफ से चुनाव प्रचार के दौरान सबसे सक्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिखे. उन्होंने 29 अप्रैल से 7 मई के बीच 7 दिन प्रचार किया. पीएम ने राज्य के 31 जिलों में से 19 जिलों में रैलियां और रोड शो किया. कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने 18 रैलियां और 6 रोड शो किए. उन्होंने रोड शो के जरिए 28 विधानसभा सीटों को कवर किया. पीएम ने मैसूर के श्रीकांतेश्वरा मंदिर में दर्शन के बाद अपने चुनाव प्रचार का समापन किया.
वहीं, गृह मंत्री अमित शाह की बात करें तो उन्होंने भी कर्नाटक में 21 अप्रैल से 7 मई के बीच 9 दिनों तक प्रचार किया. शाह ने राज्य में 31 में से 19 जिलों में रैलियां और रोड शो किया, जिसमें 16 रैली और 20 रोड शो शामिल हैं.
पार्टी के स्टार प्रचारकों में शामिल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कर्नाटक में बीजेपी के लिए जी जान लगाकर प्रचार किया. उन्होंने 26 अप्रैल से 6 मई के बीच 31 में से 9 जिलों में रैलियां और रोड शो किया. सीएम योगी ने राज्य में 10 रैली और 3 रोड शो किया.
इसके अलावा बीजेपी के स्टार प्रचारक की सूची में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी समेत बीजेपी के 40 बड़े नेता शामिल थे.
नतीजों में क्यों नहीं दिखा पीएम प्रचार का जलवा
10 मई को कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर 72.82 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले थे. 13 मई को इस विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए जिसमें किसी भी पार्टी को सत्ता में आने के लिए 113 सीटों की जादुई आंकड़े की जरूरत होती है. कांग्रेस ने जहां बहुमत के आंकड़े को पार करते हुए 135 सीटों पर जीत हासिल की है तो वहीं बीजेपी को महज 66 सीटों से पराजय का सामना करना पड़ा. जबकि किंगमेकर कहे जाने वाले देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस को सिर्फ 19 सीटों से काम चलाना पड़ेगा.
अब सवाल उठता है की बीजेपी के इतने ताबड़तोड़ प्रचार के बाद भी जनता ने आखिर कांग्रेस को ही क्यों चुना?
इसका सबसे बड़ा कारण ये रहा कि कर्नाटक का चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों के बदले स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित हो गया था और कांग्रेस ने इसमें बाजी मार ली. कांग्रेस ने जहां प्रचार के दौरान बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लॉ एंड ऑर्डर और आरक्षण जैसे मुद्दों पर अधिक बात की. वहीं बीजेपी में इस बात की कमी दिखी.
बीजेपी चुनावी जीत के लिए पीएम मोदी पर निर्भर हो गई. कर्नाटक चुनाव के परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि बार-बार पीएम मोदी पर ही चुनावी जीत के लिए निर्भर रहना बीजेपी के लिए घातक हो सकता है.
इस चुनाव के परिणाम में ने ये साबित कर दिया कि हर राज्य में हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण नहीं चल सकता है. साल 2014 में बीजेपी के केंद्र में आने से कुछ महीने पहले पश्चिम उत्तर प्रदेश में दंगे हुए थे. जिसका परिणाम ये हुआ कि काफी समय से यूपी में अपनी जमीन तलाश रहे बीजेपी को हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का लाभ मिला. इस कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान भी इस पार्टी ने ऐसी ही कोशिश की तो थी, लेकिन इसका असर नहीं हुआ.
बीजेपी की हार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कितना नुकसान
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले होने वाले विधानसभा चुनावों का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है. अभी आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा में अगले साल अप्रैल में चुनाव होने वाले हैं और मई महीने में लोकसभा चुनाव होंगे
ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का बहुमत के साथ जीतना बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं हो सकती है. ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इन तीनों ही राज्य में वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की मौजूदगी बहुत ज्यादा नहीं है.
हालांकि इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि मतदाता विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में जनादेश अलग-अलग तरह से देते हैं. उदाहरण के तौर पर राजस्थान को ही ले लीजिए. राजस्थान में साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी लेकिन लोकसभा चुनाव में इसी राज्य की 25 में से 24 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजे भी कुछ ऐसे ही रहें. ऐसे में कांग्रेस इस जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकती कि लोकसभा में भी उसे जीत मिलेगी. उदाहरण के तौर पर साल 2013 का कर्नाटक विधानसभा चुनाव ही ले लीजिए. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 224 विधानसभा सीटों में 40 सीटें ही मिली थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में वह पार्टी 28 सीटों में से 17 सीटें अपने नाम कर ली थी. वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी 28 में से 25 सीटों पर जीत मिली थी.
राज्य में कुल कितने मतदाता हैं?
चुनाव आयोग के अनुसार कर्नाटक में कुल 5.21 करोड़ मतदाता हैं, इन कुल मतदाताओं में महिलाओं और पुरुषों के बीच बहुत कम अंतर है. राज्य में वोट देने वाले कुल पुरुष की संख्या 2.62 करोड़ है, जबकि महिला मतदाता लगभग 2.59 करोड़ है.
इस चुनाव में 9.17 लाख ऐसे मतदाता थे जिन्होंने पहली बार वोट अधिकार का इस्तेमाल किया था. इसके अलावा 41,000 ऐसे वोटर्स हैं, जो 1 अप्रैल, 2023 को 18 साल के हो जाने वाले थे और उन्हें विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार मिल जाता.
बता दें कि कर्नाटक के 224 विधानसभा सीटों में से 36 सीटें अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं,15 सीटों अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं.
साल 2018 में बीजेपी का वोट प्रतिशत
साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो पिछले चुनाव में कांग्रेस 38.04 वोट प्रतिशत के साथ बीजेपी (36.22% वोट प्रतिशत) से आगे थी. वहीं जेडीएस का वोट प्रतिशत 17.7 फीसदी था.
साल 2023 में वोट प्रतिशत
वहीं साल 2023 के नतीजे में बीजेपी को 36% वोट प्रतिशत ही मिले हैं. जबकि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में बड़ा इजाफा हुआ है. कांग्रेस को करीब 43 फीसदी वोट मिले हैं और जेडीएस का वोट प्रतिशत 13 फीसदी है.
जिसका साफ मतलब है भले ही इस बार भारतीय जनता पार्टी सीटों के मामले में कांग्रेस से काफी पीछे है लेकिन वोट प्रतिशत के मामले में पार्टी पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है. वहीं जेडीएस का वोट इस बार कांग्रेस की ओर शिफ्ट होता दिखाई दे रहा है और यही वजह कि पार्टी बंपर जीत की ओर चली गई.