बरसात में मौसम में अक्सर बादलों के बीच बिजली चमकती है और जमीन पर गिरती दिखाई देती है, इससे कई लोग घायल हो जाते हैं कई बार ग्रामीण इलाकों में इतनी तेज गिरती है कि लोग मर भी जाते हैं.
देश के कई राज्यों ने केंद्र सरकार से बिजली गिरने को प्राकृतिक आपदा घोषित करने की मांग की है. राज्यों का ये कहना है कि बिजली गिरने से देश में बड़ी संख्या में मौतें होती हैं. ये मौतें दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से होने वाली मौतों की संख्या से कहीं ज्यादा है.
बिजली गिरने को प्राकृतिक आपदा घोषित करवाने के पीछे का तर्क ये है कि ऐसे राज्यों को भारत सरकार से वित्तिय पोषण मिलेगा. और राज्य सरकारें इस आपदा से निबटने में सक्षम हो पाएंगी.
बिजली गिरना क्या है समझिए
बरसात में मौसम में अक्सर बादलों के बीच बिजली चमकती है और जमीन पर गिरती दिखाई देती है, इससे कई लोग घायल हो जाते हैं कई बार ग्रामीण इलाकों में इतनी तेज गिरती है कि लोग मर भी जाते हैं.
आकाशीय बिजली ज्यादातर बारिश के मौसम में गिरती है. अगर आप खुले आसमान के नीचे, हरे पेड़ के नीचे या पानी के करीब होते हैं या फिर बिजली और मोबाइल के टॉवर के नजदीक होते हैं तो आपको इससे ज्यादा खतरा होता है.
क्यों गिरती है बिजली
इसे आप ऐसे समझिए कि आसमान में बहुत बड़ा इलेक्ट्रिक स्पार्क है, और जब मीनार, ऊंचे पेड़, घर या इंसान पॉजिटिव चार्ज हो जाते हैं तो वो पॉजिटिव इलेक्ट्रिसिटी निकलकर ऊपर की तरफ जाती है. इसे स्ट्रीमर कहते हैं .
बारिश के मौसम में बादल के निचले हिस्से में मौजूद निगेटिव चार्ज स्ट्रीमर की तरफ आकर्षित होता है. जिससे बिजली धरती पर गिरती है. यही वजह है कि ऊंची जगहों जैसे पहाड़ों पर बिजली गिरने का खतरा ज्यादा होता है.
देश में हर साल 2,500 से ज्यादा लोगों की होती है मौत
लाइटनिंग रेजिलिएंट इंडिया कैंपेन यानी एलआरआईसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2020 और मार्च 2021 के बीच भारत में 18.5 मिलियन तक बिजली गिरने की घटनाओं का अंदाजा लगाया गया था.
दिल्ली स्थित आरएमएसआई के एक अध्ययन की मानें तो ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखंड ऐसे राज्य हैं, जहां हाल के सालों में सबसे ज्यादा बिजली गिरने की घटनाएं हुई हैं.
सरकारी आकंड़ों के मुताबिक 1967 और 2019 के बीच भारत में बिजली गिरने से 100,000 से ज्यादा मौतें हुई हैं, जो इस अवधि के दौरान प्राकृतिक आपदाओं की वजह से होने वाली मौतों के एक तिहाई से भी ज्यादा है.
भारत में बिजली गिरने से बड़ी संख्या में मौतें होने के अलावा संपत्ति और बुनियादी ढांचे को भी नुकसान होता है. अगर बिजली गिरना प्रकृतिक आपदा घोषित हो जाती है तो इससे होने वाला नुकसान कम होगा साथ ही इससे निबटने के लिए बेहतर उपाय भी किए जाएंगे.
एसडीआरएफ के तहत कवर नहीं हैं बिजली गिरना
बिजली गिरना दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तरह स्टेट डिसासटर रिस्पॉन्स फंड यानी एसडीआरएफ के तहत कवर नहीं किया जाता है. ये फंड आपदा की स्थिति में राज्यों को वित्तीय सहायता देती है.
कवर की जाने वाली आपदाओं में चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीट के हमले, ठंड और शीत लहरें शामिल हैं. एसडीआरएफ को राज्य और केंद्र दोनों सरकारें वित्तिय सहायता देती हैं. जिसमें केंद्र सरकार 75 प्रतिशत की राशि की मदद पहुंचाती है.
बिजली गिरने को एसडीआरएफ के तहत कवर नहीं किए जाने का मतलब ये है कि राज्यों को बिजली गिरने से संबंधित आपदाओं से निबटने के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल करना होगा. इस तरह से ये राज्यों के लिए एक बड़ा वित्तिय बोझ हो सकता है. गरीब राज्यों के लिए तो ये बेहद ही मुश्किल हो जाता जिनके पास संसाधन की कमी है.
कौन से राज्य होते हैं इसका सबसे ज्यादा शिकार
हाल ही में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने प्रेस काफ्रेंस में कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों और पश्चिम बंगाल, सिक्किम, झारखंड, ओडिशा और बिहार में बिजली दूसरे राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा गिरती है. हांलाकि यहां पर इससे होने वाली मौत के नंबर कम है. लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में मौतों की संख्या ज्यादा हैं.
मृत्युंजय महापात्र ने ये भी कहा कि भारत दुनिया के केवल पांच देशों में से एक है, जिनके पास बिजली गिरने को लेकर एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है. जिसकी मदद से बिजली गिरने की घटना से पांच दिन या तीन घंटे पहले तक लाइटिंग की घटना के बारे में जानकारी दी सकती है.
बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री शाहनवाज आलम ने द हिंदू को बताया था कि जलवायु परिवर्तन बिजली गिरने की सबसे बड़ी वजह है. उन्होंने कहा था कि पिछले पांच सालों में राज्य में 1500 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी है. यानी हर साल 300 मौतें बिजली गिरने से हुई हैं.
बिजली गिरने को लेकर अलग-अलग राज्यों में दिन और रात का फर्क देखा गया है. जैसे पहाड़ी राज्यों में बिजली गिरने की घटनाएं रात में ज्यादा होती है. वहीं मैदानी इलाकों में दिन के दौरान बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं.
जैसे हिमालयी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में बिजली रात में गिरती है. वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसी जगहों में बिजली दोपहर में ज्यादा गिरती है. यहां उन लोगों की जान को ज्यादा खतरा होता है जो घर के बाहर होते हैं या खेतों में काम कर रहे होते हैं.
इन पांच राज्यों में 60 प्रतिशत से ज्यादा मौतें
2016 से 2020 के बीच मध्य प्रदेश में कुल बिजली गिरने से 2,301 मौतें हुई हैं. इसके बाद उड़ीसा, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों में बिजली गिरने की वजह से सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. देश में बिजली गिरने से हुई कुल मौतों का 60 प्रतिशत आंकड़ा इन्ही पांच राज्यों से हैं.
बिजली गिरने से सबसे ज्यादा मौतों वाले राज्य
2016 में आकाशिय बिजली गिरने से मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मौतें हुई. उसके बाद झारखंड में 542 मौते हुई. तीसरे नंबर पर 384 मौतों के आकंड़े के साथ यूपी और चौथे नंबर पर उड़ीसा में 376 मौतें और बिहार में 282 मौतें हुई थी. 2017 में मध्यप्रदेश में 452 मौतें, उड़ीसा में 446 मौतें , झारखंड में 150 मौतें, बिहार में 263, यूपी में 213 मौतें हुई.
2018 में मध्यप्रदेश में 381 मौतें, उड़ीसा में 299 , झारखंड में 235 मौतें, बिहार में 177 मौतें, और यूपी में 220 मौतें हुई. 2019 में मध्यप्रदेश में 400 , उड़ीसा में 271 , झारखंड में 334 , बिहार में 400 , यूपी में 321 मौतें हुई. 2020 में मध्यप्रदेश में 429 , उड़ीसा में 275 , झारखंड में 326 , बिहार में 436 , यूपी में 304 मौतें हुई.
बिजली गिरने का ग्लोबल वॉर्मिंग कनेक्शन क्या है
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से कुछ दशकों में तापमान बढ़ने से भारतीय उपमहाद्वीप में तूफान और बिजली गिरने के मामले बढ़ें हैं. रिसर्च के मुताबिक हर एक डिग्री सेल्सियस तामपान बढ़ने पर बिजली गिरने की घटनाओं में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है.
बिजली गिरने को प्राकृतिक आपदा क्यों घोषित किया जाना चाहिए?
बिजली गिरने से होने वाली मौतों को कम करने के लिए बिजली गिरने को “प्राकृतिक आपदा” के रूप में शामिल करना जरूरी है. इससे राज्यों को आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे बनाने में मदद मिलेगी. साथ ही बिजली गिरने जैसा समस्या से निबटने के लिए राज्य एजेंसियों की मदद ले पाएगें. और लंबे वक्त के लिए इस तरह की परेशानी से निबटने के उपाय भी किए जा सकेंगे.
हीट वेब भी नहीं है प्राकृतिक आपदा
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गर्मी की लहरों को भी प्राकृतिक आपदा के रूप में मान्यता नहीं दी गई है. दिल्ली स्थित डिसास्टर रिसर्च नॉन प्रॉफिट क्लाइमेट ऑबजर्विंग सिस्टम प्रोमोशन काउंसिल ने 2021-2022 के अपने सलाना रिपोर्ट में कहा था कि भारत में केवल 16 राज्यों ने बिजली गिरने को राज्य आपदा घोषित किया है. ये राज्य आपदा राहत कोष का 10 % राज्य विशिष्ट आपदाओं में इस्तेमाल कर सकते हैं.
एनडीएमए के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर द प्रिंट को बताया कि केंद्र सरकार बिजली गिरने से होने वाली मौतों को रोकने की कोशिशें कर रही है. एनडीएमए इस आपदा से निबटने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करने पर विचार कर रहा है, जिन्हें संभावित रूप से लोगों का जीवन बचाने के लिए जिला स्तर पर बढ़ाया जा सकता है.
बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के एक अध्ययन में पाया गया कि 1998 से 2014 तक बिजली गिरने की घटनाओं में लगभग 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी. रिसर्च की मानें तो इस सदी के अंत तक बिजली गिरने की घटना में बढ़ोत्तरी हो सकती है. क्रॉपसी के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में देश में 58 लाख से ज्यादा बिजली गिरने की घटनाएं हुईं, जो 2019 में 51 लाख थीं.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटरोलॉजी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक सुनील पवार ने द प्रिंट को बताया था कि मौसम में नमी का उच्च स्तर और तापमान में वृद्धि आकाशिय बिजली के खतरे को दोगूना करती है.
आईआईटीएम ने पूरे भारत में 83 जगहों पर आकाशिय बिजली गिरने का पता लगाने वाले उपकरणों का एक नेटवर्क बनाया है, जो सटीकता के साथ बिजली की गति और दिशा निर्धारित कर सकता है. पवार ने कहा, “जलवायु परिवर्तन हवा में नमी के उच्च स्तर के साथ-साथ उच्च तापमान दोनों का कारण बन रहा है.
भारत ग्लोबल वार्मिंग का असर झेलने वाले सबसे कमजोर देशों में से एक है, नतिजतन पहले से ही अनियमित मानसून, तेज गर्मी की लहरें और अब पहले से ज्यादा बिजली गिर रही है.
जागरूकता बचा सकती है लोगों की जिंदगिया
जानकार इस बात से काफी हद तक इस बात से सहमत हैं कि बिजली गिरने से होने वाली मौत को रोका जा सकता है. इसका सफर लोगों के बीच प्रारंभिक चेतावनी और जागरूकता अभियान चला कर ही तय किया जा सकता है.
झारखंड के बोकारो जिले के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी शक्ति कुमार ने द प्रिंट को बताया था कि लोगों के बीच जागरुकता अभियान चलाने में सबसे बड़ी मुश्किल सरकारी पैसों की कमी है. बिजली वैसे इलाकों में ज्यादा गिरती है जहां पर लोगों के पास किसी भी तकनीक से जुड़ने के लिए स्मार्टफोन तक नहीं होते हैं.