भोपाल और इंदौर जिलों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार को इसकी घोषणा की। कहा- बढ़ती आबादी और भौगोलिक विस्तार के कारण कानून-व्यवस्था में पैदा हुईं नई समस्याओं के समाधान और अपराधियों पर बेहतर नियंत्रण के लिए ये सिस्टम लाया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक इसका नोटिफिकेशन एक-दो दिन में आ सकता है। इससे पुलिस को जिला प्रशासन के मजिस्ट्रियल पावर मिल जाएंगे। कानून-व्यवस्था का पूरा जिम्मा उसके पास आ जाएगा।
धारा 144 लगाने, लाठीचार्ज करने से पहले कलेक्टर की अनुमति नहीं लेनी होगी। वह खुद फैसला कर सकेगी। आदतन अपराधियों को सीधे जेल भेज सकेगी। ऐसे अपराधियों की जमानत पर फैसला भी कर सकेगी। धरना-प्रदर्शन की अनुमति भी इन्हीं से मिलेगी। अभी यह सिस्टम 16 राज्यों के 70 शहरों में लागू है।
हालांकि सिस्टम को थोड़ा लचीला बनाने के लिए शस्त्र लाइसेंस आदि देने के अधिकार कलेक्टर के पास रखे जा सकते हैं। इससे पहले 28 फरवरी 2012 को शिवराज ने विधानसभा और फिर मार्च 2018 में हुई आईपीएस मीट में इसकी घोषणा की थी।
दोनों ही बार इसे टाल दिया गया। रविवार को लखनऊ में हुई डीजीपी कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने पुलिस कमिश्नर सिस्टम की तारीफ की थी। ऐसे में पूरी उम्मीद है कि इस बार मप्र के दो शहरों में यह सिस्टम लागू हो जाएगा।
सिस्टम लाने की दो बड़ी वजह
1 कानून व्यवस्था के कुछ मुद्दों पर कलेक्टर से लेनी पड़ती है अनुमति, एसडीएम कोर्ट में पेंडेंसी ज्यादा
2 बढ़ती आबादी, तकनीक के कारण कई समस्याओं से कानूनन निपटने में दिक्कत
इसके पहले दिसंबर 2009 में इन्हीं दोनों शहरों में एसएसपी सिस्टम लागू किया गया था, लेकिन इससे व्यवस्था नहीं सुधरी तो हटा लिया गया। इसके बाद 18 दिसंबर 2012 को डीआईजी सिस्टम लाया गया,जो अब तक लागू है। यदि पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हुआ तो पुलिस कमिश्नर के पद पर एडीजी और आईजी रैंक वाले अफसर को ही बैठाया जाएगा।
आगे क्या- 4 नोटिफिकेशन आएंगे, शहर और ग्रामीण में बंटेगा इंदौर
1. कैबिनेट इस सिस्टम को स्वीकृति देगी। सरकार अध्यादेश लाकर राज्यपाल की स्वीकृति से अधिसूचना लाएगी। फिर छह महीने में विधानसभा से इसे पास कराना होगा।
2. सरकार को चार नोटिफिकेशन लाने होंगे। इसमें इंदौर को वेस्ट और ईस्ट की जगह शहर और ग्रामीण में बांटा जाएगा। यही व्यवस्था भोपाल में होगी। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 8 के तहत दोनों शहर महानगरीय क्षेत्र घोषित होंगे। इससे शहर पुलिस अधीक्षक के बजाए पुलिस आयुक्त के अधीन होगा।
यह व्यवस्था ग्रामीण में नहीं होगी। फिर दोनों शहरों के पुलिस आयुक्त को अतिरिक्त कार्यपालिक दंडाधिकारी की शक्तियां दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दी जाएंगी। अतिरिक्त कार्यपालिक दंडाधिकारी की शक्तियों में दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 8 और 10 की शक्तियां निहित होंगी।
भास्कर Explainer – आनंद राव पंवार, पूर्व पुलिस महानिदेशक, मप्र
त्वरित निर्णय हो सकेंगे, शहरों में ज्यादा असरदार
- डीजीपी-पुलिस कमिश्नर सिस्टम में क्या अंतर है?
अभी धारा 144 लगाने या किसी आरोपी को जमानत के लिए कार्यपालिक मजिस्ट्रेट के पास ले जाना पड़ता है। पुलिस कमिश्नर सिस्टम से ये अधिकार पुलिस के पास होगा।
- कौन-कौन से विभाग पुलिस के पास आ जाएंगे?
ट्रैफिक कंट्रोल पूरी तरह से। किसी आरोपी का ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त करवाने जैसे आरटीओ के अधिकार भी मिल जाएंगे।
- इससे पुलिस के अधिकारों का दुरुपयोग नहीं होगा?
दुरुपयोग की संभावना तो हर जगह रहती है लेकिन सिर्फ इसी वजह से अच्छी व्यवस्था को रोका नहीं जा सकता।
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इससे क्या बदलाव आएंगे?
शहरों में कानून व्यवस्था पर तुरंत फैसले हो सकेंगे। गांवों में यह ज्यादा असरदार नहीं है, क्योंकि वहां की परिस्थितियां, चुनौतियां अलग होती हैं।